औषधि-सिद्धि या औषधि-परीक्षा (Proving) क्या है?

संशोधित: 11 December 2025 ThinkHomeo

होम्योपैथी में औषधि-परीक्षा (Proving) एक ऐसा प्रक्रिया है जिसके माध्यम से औषधियों के लक्षणों की खोज की जाती है। यह जानकारी स्वस्थ मनुष्यों पर प्रयोग करके प्राप्त की जाती है, न कि रोगियों पर। इस सिद्धांत को स्थापित करने वाले महान चिकित्सक डॉ. सैमुअल हनीमैंन थे।

औषधि-सिद्धि या औषधि-परीक्षा (Proving) क्या है?

🧬 हनीमैंन का ऐतिहासिक योगदान (1790-1805)

हनीमैंन ने 1790-1805 तक अपने जीवन के 15 वर्ष इसी काम में व्यतीत किये। इस समय में उन्होंने अपने शरीर पर 60 औषधियों की परीक्षा की।

15 वर्ष तक अपने शरीर को भिन्न-भिन्न विषों और औषधियों के प्रभाव में लाकर अपने ऊपर परीक्षा करना कितना कठिन कार्य है, इसे वे ही लोग समझ सकते हैं जो कभी किसी रूप के प्रभाव में आए हों।

👨‍⚕️ चिकित्सा-दलों का गठन और परीक्षण प्रक्रियाएं

हनीमैंन ने अपने इर्द-गिर्द ऐसे उत्साही एवं लगन के डॉक्टर तथा विद्यार्थी इकट्ठा कर लिये थे जो उसी तरह अपने ऊपर औषधियों की परीक्षा करते थे जैसे हनीमैंन अपने ऊपर किया करते थे।

इन परीक्षण-कर्ताओं का यह नहीं बतलाया जाता था कि उन्हें क्या औषधि दी जा रही है।
औषधि की मात्रा प्रतिदिन बढ़ा दी जाती थी।
औषधि की परीक्षा कई सप्ताह, कभी-कभी महीनों चलती थी।

परीक्षणकर्ता के शरीर में और मन में जो लक्षण उत्पन्न होते थे वे सब दर्ज किये जाते थे। कई परीक्षाकर्ता तो इतने उत्साही थे कि वे औषधि की रोग उत्पन्न करने की शक्ति को परखने के लिये अन्त तक अपने जीवन को जोखिम में डाल देते थे।
उनके भीतर जो लक्षण उत्पन्न हो गये वे जीवनभर बने रहे, कभी गए ही नहीं।

📊 औषधियों की शक्ति (Potency) और डॉ. डनहम का कथन

होम्योपैथी में दिलचस्पी रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति की यह जानने की इच्छा होती है कि:

“औषधि-परीक्षा (Proving) किस शक्ति को लेकर की गई?”

श्री हनीमैंन के ग्रंथों के आधार पर डॉ. डनहम का कथन है:

सिल्वर नाइट्रेट की परीक्षा 15 शक्ति में,

कार्बोवेज की 3 ट्रिच्युरेशन में,

नैट्रम म्यूर की 30 शक्ति में परीक्षा दी गई।

कई लोगों का कहना है कि हनीमैंन तथा उनके साथियों ने निम्न शक्ति में औषधियों की परीक्षा की थी।
परंतु पहले जो-कुछ भी किया था, हनीमैंन ने अपने तीस साल के अनुभव के बाद लिखा कि:

30 शक्ति में 'औषधि परीक्षा' करने से ही औषधि अपने सब लक्षण ठीक-से प्रकट करती है।

🧪 औषधियों की पुनः परीक्षा (Re-Proving)

इन औषधि परीक्षाओं के विषय में यह भी जान लेना उचित है कि 1842 से 1848 के बीच ‘आस्ट्रियन प्रूवर्स यूनियन’ ने हनीमैंन द्वारा परीक्षित औषधियों की:

'पुनः परीक्षा' (Re-proving) की।

वे लोग यह जानना चाहते थे कि:

  • * हनीमैंन की परीक्षाएँ सही थीं या उनमें कुछ गलतियाँ भी थी।

✔ इन 'पुनः परीक्षाओं' में औषधियों के विषय में हनीमैंन के निर्णयों की पुष्टि हो हुई।


🤒 रोगियों या जानवरों पर नहीं, स्वस्थ मनुष्यों पर परीक्षा क्यों?

होम्योपैथी के मत के अनुसार:

जानवरों पर या रोगियों पर परीक्षण करना और स्वस्थ मनुष्य पर परीक्षण करना — इन दोनों में महान अंतर हैं।

यदि यह सिद्धांत ठीक है कि:

  • स्वस्थ शरीर तथा मन पर औषधि का प्रयोग करने से जो लक्षण उत्पन्न होते हैं,
  • रोग में उन लक्षणों के उत्पन्न होने पर वे उस औषधि से दूर हो जाते हैं,

तो यह भी निश्चित है कि औषधि की परीक्षा स्वस्थ शरीर पर ही करनी होगी

🧍‍♂️ स्वस्थ बनाम रोगी परीक्षण

  • जानवर तो कुछ बतला ही नहीं सकते, उन पर की गई परीक्षा होम्योपैथी के सिद्धांत से बेइमानी है।
  • रोगी पर की गई परीक्षा भी होम्योपैथी के मत से निरर्थक है क्योंकि रोगी तो पहले ही रोग के लक्षणों से आक्रान्त है।

जब रोग का कोई लक्षण न हो, शरीर स्वस्थ हो, तभी तो पता लग सकता है कि औषधि ने अपने क्या लक्षण उत्पन्न किये।


📖 हनीमैंन के अनुसार: क्यों नहीं बदलती होम्योपैथी?

  • स्वस्थ में सब का शरीर एक समान होता है, रोग में भिन्न-भिन्न होता है,
  • इसलिये स्वस्थ शरीर में औषधि जिन लक्षणों को उत्पन्न करेगी वे ही सत्य, अखण्ड लक्षण होंगे।

ऐसे लक्षण जो अपरिवर्तनीय हैं, इसलिए अपरिवर्तनीय हैं क्योंकि सब स्वस्थ मनुष्यों में औषधि के एक ही प्रकार के लक्षण उत्पन्न होंगे, भिन्न-भिन्न प्रकार के नहीं।

इसी आधार पर हनीमैंन का कहना है:

"होम्योपैथी एलोपैथी की तरह समय-समय पर नहीं बदलती रहती।
उसके जो आधार आज से सौ साल पहले थे, वे आधार आज भी हैं,
और वही आधार आज से सदियों बाद भी रहेंगे।"


✅ निष्कर्ष (Conclusion)

  • औषधि-परीक्षा (Proving) ही होम्योपैथी का आधार है, जिससे विश्वनीय लक्षणों का निर्माण होता है।
  • यह प्रक्रिया स्वस्थ मनुष्यों पर, नियंत्रित व दस्तावेज़ी रूप में की जाती है।
  • हनीमैंन की यह खोज आज भी उतनी ही वैज्ञानिक और स्थायी मानी जाती है जितनी 200 साल पहले थी।


 

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